छोटी बहू का ससुर और ताऊ संग हनीमून- 2

द डे आफ्टर फेस्ट नाईट को मेरे साथ क्या हुआ ससुराल में? मेरे ससुराल की महिलायें मुझे मेरी पहली रात के अनुभव के बारे में पूछने लगी. मुझे शर्म आ रही थी.

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कहानी के पहले भाग
फिसड्डी पति के साथ पहली रात
में अपने पढ़ा कि मेरी शादी मर्चंट नेवी में काम कर रहे चिराग से हुई.
पहली रात यानि सुहागरात को चिराग ने मुझे नंगी करके गर्म किया पर दरवाजे पर ही पसर गए.

अब आगे द डे आफ्टर फेस्ट नाईट:

सुबह जब आंख खुली तो चिराग मेरी चूचियां चूस रहा था।
वह शायद फिर संभोग की इच्छा रखता था।

उसने फिर रात की तरह मुझे पूरी तरह गर्म किया और मेरी भगनासा से स्खलित होकर तृप्त हो गया।
अब तक मुझे लग रहा था कि यही सम्भोग है।

हम दोनों नंगे हो कर साथ नहाए और मेरे बदन के हर हिस्से पर चिराग अपना हक समझ के टटोलता.
उसने बाथरूम में शावर के नीचे मेरी चूत में उंगली भी की.

फिर तैयार होकर हम दोनों ने परिवार के साथ नाश्ता किया.

मैं बताना भूल गई कि मेरे ससुर विधुर है और ताऊ ससुर भी विधुर हैं.
ताऊ जी साथ वाले घर में ही रहते हैं.

पुश्तैनी जमीन होने के कारण जब मेरे पति की दादी का देहांत हुआ तो घर में दीवार डाल कर सबने खुशी खुशी बंटवारा कर लिया।

चाचा ससुर ने अपना हिस्सा मेरे ससुर को बेच दिया और पैसे लेकर दूसरे शहर जा बसे।
शादी पर चाचा रमेश और चाची रमा, उनके दो जवान जुड़वां बेटे मुकुल और मोहित भी आए थे और हमारे साथ ही रह रहे थे।

उन दिनों दोनों लड़के तकरीबन 18 साल के थे … मेरे से सिर्फ 2 साल छोटे।

ताऊ ससुर के दो बेटियां और एक बेटा है, तीनों ही बच्चे मेरे पति से बड़े हैं, मेरी दोनों बड़ी ननद (ताऊ जी की बेटियां) देश से बाहर रहती हैं, इसीलिए वे नहीं आ सकी।

उनका बेटा अशोक, जो रिश्ते में मेरा जेठ होता है, वह अपनी पत्नी शारदा और दो छोटे बच्चों के साथ ताऊ जी वाले हिस्से में रहता है।

मेरे ससुर की एक छोटी बहन भी है रंजीता जो रिश्ते में मेरे पति की बुआ लगती हैं.
वे भी अपने पति सुरेश, यानी फूफा जी के साथ आई हुई थी.

उनके एक बेटे की अभी नई नौकरी लगी थी, वह मुझसे 2 साल बड़ा है।
उनका दूसरा बेटा उन दिनों MBA की पढ़ाई कर रहा था, वह मेरी ही उम्र का है।

मेरे पति का एक सगा भाई (सूरज) और एक सगी बहन भी है.
मेरे पति कक्कड़ परिवार में सबसे छोटे हैं, ऐसे में मैं घर की छोटी बहू थी।

मेरी ननद अमदाबाद में अपने ससुराल में रहती है, वह उन दिनों पेट से थी इसलिए वह भी शादी में नहीं आ सकी।

जब मेरी शादी हुई, उन दिनों मेरे सगे जेठ सूरज की पत्नी ने मेरे जेठ से तलाक की अर्जी लगाई हुई थी।
दोनों में एक साथ परिवार के साथ रहने के मुद्दे पर झगड़ा था।

घर में औरतें कम होने के कारण, अशोक की पत्नी शारदा और चाची सास रमा और बुआ रंजीता ही सारा काम देख रहे थे।

जब मैं सुबह तैयार होकर बाहर आई तो सभी ने मुस्कुरा कर मेरा स्वागत किया.
द डे आफ्टर फेस्ट नाईट शुरू हुआ.

मैंने अपने ससुर, ताऊ जी, बुआ और फूफा जी के पांव छुए.
जेठ जी भी फैक्ट्री पर जाने को तैयार हो कर बाहर आ गए।

ज्यों ही मैं अशोक और सूरज के पांव छूने के लिए झुकी, तो उन्होंने मुझे पांव छूने को मना किया।
बुआ जी ने बार बार कहा- तुम बड़े हो, तुम्हारी इज्जत करना उसका वधू धर्म है।

सूरज जेठ जी कम बात करते हैं, पर जब भी करते हैं पते की करते हैं।

सूरज- मैं इन सब चीजों में नहीं मानता … चांदनी तुम ये दकियानूसी रिवाजों में मत पड़ो।
बुआ जी को जवाब देते हुए उन्होंने कहा और खाने के लिए बैठ गए।

तब बुआ जी के दोनों बेटों ने मेरे पांव छुए.
भले ही मैं उन्हीं की उम्र की थी पर रिश्ते में मैं उनकी भाभी थी।

अशोक जेठ जी भी बोले- हां बुआ, अब ज़माना नहीं रहा. चांदनी हमारी हमउम्र है. पांव वगैरा छूने से रिश्ते बंध से जाते हैं. अगर रिश्तों में प्यार ही दिखाना है तो पांव क्यों छूने, गले लगाना चाहिए! क्यों छोटे पापा?
यह कहते हुए उन्होंने मुझे सीने से लगा लिया और मेरी चूचियां उनके सीने में दब गई.

सब ठहाका लगा कर अशोक की बात पर हंस दिए।

अशोक जेठ जी मुझे ज्यादा हिलने मिलने वाले व्यक्तित्व के लगे, वे हंसी मजाक भी कर रहे थे।

अशोक और सूरज दोनों साथ में बिजनेस संभालते हैं, अक्सर साथ ही आते जाते हैं।

शारदा भाभी ने मुझे रसोई में आने का इशारा किया।

मैं सबके बीच से उठ कर रसोई घर में चली गई.
वहां रंजीता बुआ और चाची सास रमा भी थी।

मैंने रसोई में जाते ही पहले तीनों के पांव छुए।

तभी रमा चाची ने पूछा- और बता, कैसी रही ब्याह की पहली रात? कुछ किया भी या बस, शर्माते रहे एक दूसरे से?
मैंने शर्माते हुए नज़रे झुका ली।

शारदा भाभी ने मुझे कोहनी मारी और कहा- क्या हुआ, पलंग तो नहीं तोड़ दिया कहीं?
मैं- भाभी क्या आप भी …

रंजीता बुआ ने संजीदगी से कहा- देखो बहू, सूरज का तो तुम्हें पता ही है, जाने कब उसका मामला सुलझेगा. अब वारिस की जिम्मेदारी चिराग और तुम पर ही है। हम यह नहीं कह रहे कि जिंदगी के मजे मत करो. पर मजे करते करते जिम्मेदारी मत भूलना. यही एक अच्छी और संस्कारी बहू की पहचान होती है। बाकी कुछ मदद चाहिए हो या मन की बात बांटनी हो तो पड़ोस में है शारदा, इसे अपनी सहेली समझो, तुमसे बस 5 साल ही बड़ी है। हम सभी रिश्तेदार तो कल परसों में अपने अपने घर को चले जाएंगे, फिर इस घर को तुम्हें ही संभालना है।

मैं- जी बुआ जी!
कहते हुए मैंने दोबारा बुआ जी के पांव छुए.
बुआ जी- खुश रहो, सदा सुहागन रहो, दूधो नहाओ, पूतों फलो।

रमा चाची और बुआ दोनों ज्ञान बाँट के बाहर चली गई।

शारदा- सुनो आज तो तुमने बुआ और चाची के सामने मेरे पांव छू लिए, आगे से मत छूना … हम दोनों सहेलियों जैसी है। अच्छा सुनो, सच्ची सच्ची बताओ, कुछ हुआ या नहीं? अब तो चाची और बुआ भी नहीं है यहां!

मैं शर्माते हुए धीमी आवाज में- भाभी जो होता है, वो हो गया अब बस मत पूछो कि क्या!
कहकर मैं शर्माती हुई रसोई घर से बाहर आ गई।

फूफा जी ने चिराग को एक लिफाफा दिया जिसमें हनीमून के लिए फ्लाइट की टिकट और बीच हाउस की बुकिंग थी 4 रात 5 दिन की- ये रखो, तुम दोनों के हनीमून के लिए!
मानो कह रहे हों कि जाओ बच्चो, जम कर चुदाई करो.

चिराग ने लिफाफा लेते हुए फूफा जी के पांव छुए.
मैंने भी उसके साथ फूफा जी के पांव छुए.

फूफा जी ने हम दोनों को सीने से लगा लिया, चिराग उनके बायीं ओर था और मैं दायीं ओर!

तब फूफा जी ने पीछे से मेरी साड़ी से झांकती कमर पर हाथ रख दिया और ऊपर ब्लाउज की तरफ बढ़ने लगे, उन्होंने ब्लाउज के ऊपर से ही मेरी ब्रा की हुक खोल दी.

ये सब इतना अचानक हुआ कि मैं उनकी इस शरारत को समझ नहीं पाई कि ये गलती से हुआ या उन्होंने जानबूझकर किया.

अब इतने रिश्तेदारों के सामने मैं वापिस कमरे में जाती तो अच्छा नहीं लगता.
किसी तरह मैं अपने पल्लू से अपनी आजाद चूचियों को ढकने का प्रयास करने लगी.

चिराग ने नोटिस कर लिया, वह मेरे कान में फुसफुसाया- क्या हुआ, सब ठीक?
मैंने भी फुसफुसाते हुए चिराग को बताया- जी वो मेरी ब्रा की हुक खुल गई है.

चिराग मुझे बहाने से रसोई घर में ले गया.

वहां शारदा भाभी हमें देख के समझ गई कि हम एकांत ढूंढ रहे हैं … वे रसोई घर से बाहर चली गई.

चिराग मेरे करीब आया- लगता है तुम्हारी ब्रा को रात तक का इंतजार नहीं हो रहा?
उसने पल्लू में हाथ डालकर मेरी कड़क चूचियां पकड़ ली- सारे रिश्तेदार चले जायें तो तुम्हें घर में ब्रा पैंटी पहनने की जरूरत नहीं है. सच कहूं तो कल रात के बाद मुझसे रहा नहीं जा रहा!

मैं चिराग के उतावलेपन को देख शर्मा गई.
चिराग ने मेरे कड़क होते चूचुक ब्लाउज के ऊपर से ही पकड़ के खींच दिए और मुझे किस करने लगा.

तभी बाहर से आवाज आई- बहू … बेटा इधर तो आना!
मेरे ससुर जी ने मुझे बुलाया.

मैंने चिराग को धक्का देकर अलग किया और कपड़े संभालते हुए रसोई घर से बाहर चली आई- जी पापा जी?
ससुर जी- ये फूफा जी के साथ जाओ और अंदर जो बेटियों के लिए कपड़े रखे है, इनकी गाड़ी में रखवा दो … ये लो अलमारी की चाबी!

मैं चाबी लेकर ससुर जी के कमरे में चली गई और फूफा जी भी मेरे पीछे पीछे आ गए.
ससुर जी का कमरा साफ सुथरा था.

एक तरफ कुर्सियां रखी थी, डबल बेड, ऐसी, टीवी सब सुविधाएं थी।

मैंने चाबी लगा के उनकी अलमारी का दरवाजा खोला तो फूफा जी ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया।

मैंने ध्यान नहीं दिया और अलमारी में सामान ढूंढने लगी.

कपड़ों के बीच दबी कुछ तस्वीरें दिखी … नंगी और अधनंगी.
सभी में चेहरे हाथों से ढके थे।

मैं उन तस्वीरों को देख सम्भल नहीं पाई और हड़बड़ाहट में तस्वीरें नीचे गिर गई.

फूफा जी ने वो तस्वीरें उठा ली और मजे से देखने लगे.
अब मैं फूफा जी से नज़रे नहीं मिला पा रही थी.

मैं झुक कर सामान निकालने लगी.
तभी मुझे मेरे नितंबों पर हाथ लगता महसूस हुआ.
मैं उठ के गुस्से से घूमी तो फूफा जी ने मेरे मुंह पर हाथ रख दिया.

फूफा जी- श … अगर तुमने किसी को कुछ बताया या आवाज की तो मैं ये नंगी तस्वीरें सबको दिखा दूंगा कि ये तुम्हारी है … शादी से पहले तुम्हारे चक्कर थे और तुम एक चरित्रहीन लड़की हो.

मेरी आंखों में आंसू आ गए.
अब फूफा जी कान में फुसफुसाये- ब्रा खुलवा के मजा आया? अब थोड़ा मैं भी मजा ले लूं!

उन्होंने मेरे ब्लाउज की हुक खोल दी और अपने एक हाथ से मेरी कड़क चूचियों को मसलने लगे- तेरे तो निप्पल भी कड़क हैं!
उन्होंने मेरी एक चूची बाहर निकाली और चूसने लगे.

चिराग की हरकतों से मैं पहले ही गर्म थी.

फूफा जी पागलों की तरह मेरी संतरों सी कड़क चूचियां चूसने लगे।
उनके इरादे मुझे नेक नहीं लग रहे थे।
उन्होंने साड़ी के अंदर हाथ डाल दिया और मेरी कच्छी से छिपी चूत को अपने कब्जे में कर लिया।

जाने क्यूं मैं विरोध नहीं कर पा रही थी.

तभी बाहर से चिराग की आवाज आई.
चिराग बाहर से बोला- चांदनी … कहां रह गई, पग फेरे के लिए मायके नहीं जाना क्या? जल्दी से तैयार हो जाओ, फिर मैं तुम्हें छोड़ आता हूं.

चिराग की आवाज सुन मैं हड़बड़ा गई … मैं जल्दी में बाहर जाने लगी तो, फूफा जी ने मेरी कलाई पकड़ के मरोड़ दी.
फूफा जी- बहुत गर्म हो तुम बहू, एक दिन तो तुम्हें अपने नीचे लेटा के रहूंगा।

मैं हाथ छुड़ा कर कपड़े ठीक करते हुए बाहर आ गई.
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ मेरे साथ … मैं चिल्लाई क्यों नहीं … किस से कहूं … क्या चिराग मेरी बात मानेगा, या बुआ जी मानेंगी कि उनके पति ने मेरे साथ क्या हरकत की.

मैं मन ही मन सोचते हुए परेशान हो गई.

ससुर जी- लो आ गई बहू … बेटा तैयार हो जाओ, फिर फेरा डालने भी जाना है..
मैं और चिराग अपने कमरे में तैयार होने चले गए.

जैसे ही हम कमरे में घुसे, चिराग ने मुझे कसकर पकड़ लिया और बेतहाशा चूमने लगा.

मैं उसे बताना चाहती थी सब कुछ … पर वह शायद मेरी कोई बात सुनने मूड में नहीं था.

“आह … अब इंतजार नहीं हो रहा. आज रात कैसे बीतेगी. तुम्हारे जाने से पहले एक बार कर लें.”

अपनी उधेड़बुन में मैंने चिराग को कोई जवाब नहीं दिया.
मेरी चुप्पी को मेरी शर्म से भरी हां समझ उसने मेरा पल्लू उतार कर जमीन पर गिरा दिया और मेरे ब्लाउज के बचे हुए हुक खोलने लगा.

चिराग- अरे वाह, तुमने पहले ही मेरे लिए आधे हुक खोल दिए.
यह कहकर वो फिर मुझे आलिंगन देते हुए होंठों पर किस करने लगा।

उसके उतावलेपन के कारण बचे हुए हुक खुल नहीं रहे थे.
वासना के वेग में उसने मेरे ब्लाउज के हुक तोड़ डाले और मेरी खुली ब्रा को मुझसे तुरंत अलग कर मुझे अधनंगी कर दिया.

आज भी चिराग को मुझे नंगी करने में उतना ही आनंद आता है, जितना पहली रात में आया था।

मेरी चूचियों को चूसने की ललक उसके सूखते होंठों पर झलक रही थी.
बिना रुके उसने मेरे चूचुक मुंह में भर लिए.

अनायास ही अपनी संतरों सी चूचियां चुसवाते हुए मुझे फूफा जी की चूची चुसाई याद आ गई.
मैंने चिराग का चेहरा अपनी चूचियों से उठाकर पहली बार उसे खुद किस किया.

हमारा लंबा गहरा चुम्बन मेरे अंदर भड़कती आग का अंश था.

उस चुम्बन के दौरान चिराग ने खींच कर मेरी साड़ी खोल डाली और पेटीकोट ऊपर कर मेरी चूत में उंगली करने लगा।

गीली तो मैं पहले से थी, मेरी चिपचिपी चूत उसके लंड को आमंत्रण दे रही थी।

उसने मुझे अपना लंड चूसने को कहा.
मैं समझी नहीं कि वह ऐसा क्यों कह रहा है.

मैंने मुंह बनाते हुए मना कर दिया और उसकी पेंट की जिप से बाहर निकला कड़क लंड पकड़ कर हिलाने लगी।

वह मेरा हाथ पकड़ कर पलंग तक ले गया और मुझे बिस्तर पर धकेल कर मेरे ऊपर आ गया.
उसे मुझे चोदने की बहुत जल्दी थी … उसने अपना कड़क लंड मेरी योनि के मुहाने पर रखा … और जोर लगाने लगा.

लंड अंदर नहीं गया … रह रह कर फिसल जाता.
उसने मेरी भगनासा पर अपने लंड का टोपा रगड़ … ऊपर से नीचे तक मेरी चिपचिपी चूत रस में अपना लंड सना लिया और मेरी चूत पर घिसने लगा.

देखते ही देखते उसने फिर मेरी भगनासा से स्खलन प्राप्त किया और मैं रात की तरह फिर प्यासी रह गई.

झड़ते ही वह मेरी बगल में निढाल पड़ गया.

चिराग हांफती सांसों में बोला- तुम नहीं जानती तुम क्या चीज हो … इतनी गर्म और कड़क … कोई भी तुम्हें चोद कर जन्नत का मजा ले सकता है. पर वादा करो कि तुम सिर्फ मेरी बन के रहेगी, कक्कड़ बन के रहोगी और इस कक्कड़ परिवार को अपना समझ के सेवा करोगी।

मैं चिराग से लिपट गई और उसके मांगे वादे को चुम्बन की मोहर से हामी दी।

हम तैयार हुए और चिराग मुझे मायके छोड़ गया।

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