देसी बहू सेक्स कहानी में होली के दिन ससुराल में उसके ससुर ने बाथरूम में उसे पकड़ लिया। फिर उसकी ऐसी चूत खोली की गुंजा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। पूरी दास्तां इस कहानी में पढ़ें।
दोस्तो, मैं आपका दोस्त विशू आपके लिए बहुत दिनों बाद एक कहानी लेकर आया हूं।
यह कहानी है गुंजा की।
गुंजा एक गरीब घर में पैदा हुई थी लेकिन वह एक खाते-पीते घर की बहूरानी बनी।
देसी बहू सेक्स कहानी में आगे बढ़ने से पहले गुंजा के घर के बाकी सदस्यों से आपकी मुलाकात करवा देता हूं।
गुंजा का पति था रघुवीर। उसके ससुर का नाम मुनिलाल था।
गुंजा की ननद रानी थी, जो नाम से ही नहीं काम से भी रानी थी।
वह होली मनाने अपने मायके आई हुई थी पति के साथ.
रानी के पति यानी गुंजा के ननदोई का नाम छगनलाल था।
जबकि गुंजा के छोटे देवर का नाम सारंग था।
मार्च का महीना चल रहा था और होली का दिन था।
सबने होली की पूजा की।
फिर सब घर को चले आए और अपने-अपने कमरे में सोने के लिए जा पहुंचे।
गुंजा के ससुराल में होली के दिन कोई कुछ भी करे किसी को मनाही नहीं थी और न ही कोई बुरा मान सकता था।
तो अगले दिन गुंजा सुबह 6 बजे उठ गई।
उनके घर में वही सबसे पहले उठा करती थी, नहा धोकर वही सबको जगाती थी।
उसे लगा था कि आज कोई नहीं उठेगा।
लेकिन उसके ससुर मुनिलाल जाग चुके थे।
मुनिलाल के साथ ही उसका लंड भी जाग चुका था।
मुनिलाल की पत्नी को गुजरे 2 साल बीत चुके थे लेकिन उसके पास चूतों की कोई कमी नहीं थी।
घर से बाहर मुनिलाल के खूब चक्कर चल रहे थे।
एक दिन तो मुनिलाल ने अपनी समधन को भी पेला था जब वो गुंजा के यहां रहने आई थी।
खैर, वो तो पुरानी बात हो गई थी।
आज मुनिलाल का औजार बैठने का नाम नहीं ले रहा था।
मुनिलाल बार-बार अपने हथियार को सहलाते-दबाते घर में घूम रहा था।
तभी उसकी नजर गुंजा बहू पर गई।
उसकी मटकती चाल, ठुमकती कमर, और उछलते स्तनों के कारण वो किसी काम की देवी से कम नहीं लग रही थी।
गुंजा को देख मुनिलाल का मन डोल गया था।
उसे बहू की चूत चुदाई करने का बड़ा मन हो उठा।
अब वो सोचने लगा कि बहू को कैसे दबोचे।
तभी उसकी नजर मेज पर सजे होली के रंगों पर पड़ी।
यह देखकर मुनिलाल के चेहरे पर शैतानी मुस्कान तैर गई।
उसने दोनों मुट्ठियों में रंग लिए और गुंजा की ओर बढ़ चला।
इतने में गुंजा नहाने के लिए बाथरूम में घुस चुकी थी।
उसने बाथरूम में जाकर साड़ी और ब्लाउज उतार दिए थे।
गुंजा ऊपर से नंगी हो चुकी थी और नीचे से केवल पेटीकोट पहना था।
गुंजा बाथरूम की कुंडी लगाये बिना नहाती थी।
उस दिन भी कुंडी खुली हुई थी।
मुनिलाल आया और सीधा बाथरूम का दरवाजा धकेलते हुए अंदर घुस गया।
सामने ससुर को देख गुंजा के होश उड़ गए।
इससे पहले वो कुछ समझ पाती मुनिलाल ने उसे दबाचे लिया और गालों पर गुलाल मलते हुए ‘होली मुबारक बहू’ … ‘होली मुबारक’ कहने लगा।
गुंजा की पीठ मुनिलाल के सीने से चिपकी हुई थी।
मुनिलाल का लंड गुंजा की गांड की दरार के बीच जा फंसा था।
गांड की फाड़ों में ससुर के मोटे मूसल का अहसास पाकर गुंजा के बदन में सनसनी दौड़ गई।
यह पहली बार था जब उसके ससुर का बदन उसके जिस्म से इस कदर चिपका हुआ था।
गुंजा के मन में एक तरफ डर और दूसरी तरफ बदन से बदन सटा होने की कामुकता का दोहरा अहसास पागल बना रहा था।
ससुर के द्वारा दबोचे जाने का अहसास और उसके मर्दाना शरीर की खुशबू से गुंजा मदहोश होती जा रही थी।
मुनिलाल ने एक हाथ उसकी कमर पर रखे हुए उसकी गांड को अपने लंड पर दबाए रखा था और दूसरे हाथ से गुंजा के गालों पर गुलाल मल रहा था।
धीरे-धीरे से वो गुंजा की गांड में धक्के लगाने की कोशिश कर रहा था।
गुंजा ‘नहीं-नहीं’ करते हुए अपना चेहरा इधर-उधर हिला रही थी।
अब मुनिलाल का हाथ गुंजा की कमर से सरकता हुआ नीचे की ओर जाने लगा।
मुनिलाल का हाथ धीरे-धीरे गुंजा के पेटीकोट के नाड़े को टटोलता हुआ नीचे जा पहुंचा।
फिर नाड़ा मिलते ही एक झटके के साथ उसने उसे खींच दिया।
उधर दूसरा हाथ, जो गुंजा के चेहरे पर था, उसे नीचे लाते हुए मुनिलाल ने चूचों पर रख दिया।
वो अपने सख्त हाथ से गुंजा के खरबूजे मसलने लगा।
नीचे से उसका हाथ पेटीकोट का नाड़ा खोल सीधे चूत पर जाकर सहलाने लगा था।
इस दोहरे वार से गुंजा अब अपना आपा खोने लगी थी।
उसे होश भी नहीं रहा कि उसका घाघरा नीचे गिर चुका था।
इतने में मुनिलाल ने बीच की उंगली गुंजा की चूत की फांकों के बीच दे डाली।
चूत में उंगली जाते ही गुंजा के अंदर एक तूफान सा उठने लगा।
वो अब चुदासी सी होने लगी।
उसके हाथ अपने आप ही उसके ससुर की गर्दन में जा लटके।
मुनिलाल यह देख जोर से अपने मर्दाना हाथों से उसकी चूचियों को मसलने लगा।
गुंजा की वासना भी भड़क उठी थी।
लेकिन इससे पहले वो कुछ करती मुनिलाल ने उसे अपनी तरफ घुमाकर उसके होंठों पर होंठ रखे और चूसने लगा।
गुंजा की कमर बहुत कमसिन थी लेकिन उसकी चूचियों और पिछवाड़े का आकार उसे पूर्ण नारी बनाता था।
मुनिलाल ने गुंजा को कमर से थामकर गोद में उठा लिया।
गुंजा समझ नहीं पा रही थी कि ये सब क्या और कैसे होता जा रहा है।
जिस ससुर को उसने ढंग से देखा भी नहीं था आज उसका लंड उसकी चूत में जाने के लिए तैयार हो चुका था।
गुंजा ने भी अपनी टांगों को ससुर की कमर पर लपेट लिया।
अगले ही पल मुनिलाल का लंबा-मोटा लंड गुंजा की चूत के द्वार पर जा लगा।
गुंजा को चूत पर किसी अंजान चूतखोर लंड का अहसास हुआ।
तभी मुनिलाल ने अपने हाथ पर थूका और लंड पर चुपड़ दिया।
फिर लंड को चूत के मुंह पर रखा और कमर को पकड़ कर एक करारे झटके के साथ बहू को अपने लंड की ओर दबा दिया।
एक झटके में ही मुनिलाल का हथियार गुंजा की चूत की गहराई में जा घुसा।
इस हमले से गुंजा की जान हलक में आ गई- ईईईई … स्स्स्स … मर गईईई … ऊईईईई माआ आआ!
मुनिलाल ने तुरंत अपने होंठों से गुंजा के होंठों को बंद कर दिया।
फिर वह उसके होंठों को चूसने लगा।
गुंजा को अपने अंदर एक गर्म सरिया घुसा हुआ महसूस हो रहा था।
मुनिलाल बिना रुके अपनी बहू को अपने खड़े खूंटे पर उठा कर पटक रहा था।
हर धक्के में गुंजा की आआह निकल रही थी।
हर धक्के के साथ गुंजा को ऐसा लग रहा था कि मुनिलाल का खूंटा हर बार उसकी चूत के और अंदर घुस रहा है।
मुनिलाल बिना रुके उसे खड़े-खड़े चोद रहा था।
कुछ ही देर में उसकी चूत ने रस छोड़ना शुरू कर दिया।
लेकिन मुनिलाल नहीं रुका।
गुंजा की चूत के रस ने मुनिलाल के लंड को गीला कर दिया।
अब वो और जोर-जोर से उसको चोदने लगा।
तब मुनिलाल का मन बदला और गुंजा को वो उसी पीजोशन में अपने लंड पर उठाए हुए अपने कमरे में ले गया।
गुंजा अभी भी अपने ससुर के खूंटे में फंसी थी और अपने पैरों को मुनिलाल की गांड पर जकड़े हुए थी।
मुनिलाल ने उसे अपने पलंग पर ला पटका, फिर उसके पैरों को खोला।
उसके पैरों को फैलाकर ऊपर किया और फिर अपना पूरा लंड बाहर निकाल लिया।
सामने गुंजा की चूत थी जो पूरी खुल चुकी थी।
उसकी फैली चूत पर मुनिलाल ने अपनी जुबान लगा दी।
इस हमले से गुंजा अनजान थी।
उसकी चूत पर पहली बार किसी का मुंह लगा था और वो भी मूछों वाला।
मुनिलाल अब अपनी जुबान से गुंजा की चूत को टटोलने लगा।
गुंजा की चुदी हुई चूत पर मुनिलाल की जीभ अब ऐसा तूफान मचा रही थी कि गुंजा मदहोशी में डूबने लगी।
ससुर की जुबान को वो ज्यादा देर बर्दाश्त नहीं कर पाई और जोर-जोर से झड़ने लगी।
उसने अपनी चूत का सारा रस मुनिलाल की जुबान पर छोड़ दिया।
मुनिलाल ने भी उसे बूंद-बूंद चाट लिया।
गुंजा का शरीर शांत हो गया और वो हांफने लगी, अपनी सांसों को समेटने लगी।
मुनिलाल ने फिर जुबान का खेल अपनी बहू की चूत में चालू किया।
एक बार फिर से गुंजा की आह्ह निकली।
अब मुनिलाल की जुबान उसकी चूत के और अंदर तक जाने लगी।
उसकी चूत एक-एक नस टटोलती जुबान के साथ मस्ती में नाचने लगी।
गुंजा की चूत एक बार फिर से मुनिलाल के होंठों पर कामरस बरसाने लगी।
अब मुनिलाल ने अपने कड़क पड़े सिपाही को चूत के द्वारा पर टिका दिया।
उसने जोर से झटका मारा।
झटके के साथ एक बार फिर से गुंजा की चीख निकल गई।
गुंजा ने खुद ही अपने होंठों पर हाथ रखकर आवाज को बंद करने की कोशिश की।
मुनिलाल के धक्के लगातार चालू थे।
फिर कुछ पल बाद मुनिलाल ने पूरा लंड बाहर निकाल कर पूरी ताकत के साथ लंड को अंदर ठेल दिया।
वो लगातार ऐसे ही करने लगा जिससे ठप-ठप की आवाज आने लगी।
ऐसी जबरदस्त चुदाई ने गुंजा को फिर से रस बरसाने पर मजबूर कर दिया।
आह्ह … आह्ह … की आवाजों के साथ गुंजा झड़ने लगी।
10 मिनट की पलंगतोड़ चुदाई के बाद मुनिलाल ने गुंजा को अब पलट दिया।
अब वो पीछे से उसकी चूत मारने लगा।
गुंजा को आज एक अलग ही अनुभव मिल रहा था कि कैसे उसके पति के पिता उसे चोद रहे हैं।
पिता का लंड पति के लंड से मोटा और लंबा था।
देसी बहू सेक्स में एक बार फिर से गुंजा की चुदाई ने स्पीड पकड़ी।
कुछ ही देर में गुंजा फिर खाली हो गई।
आज गुंजा की चूत रस बरसा बरसाकर थक चुकी थी।
इतने में ही मुनिलाल ने भी अपने लंड से वीर्य की लंबी धार छोड़ी जो गुंजा की चूत को भरने लगी।
दोनों के बदन बुरी तरह से कांप रहे थे।
मुनिलाल भी उसी स्थिति में गुंजा की पीठ पर पड़ा रहा।
दोनों ही अपनी सांसों पर काबू करने की कोशिश कर रहे थे।
कुछ देर में मुनिलाल का लंड मुरझाकर चूत से बाहर आ गया।
ससुर के लंड और बहू की चूत के रस का मिश्रण चूत से बाहर आने लगा।
मुनिलाल ने अपने लंड से उस रस को पौंछा, फिर अपने कपड़े पहने।
उसने बहू को खड़ी करके अपनी तरफ किया और उसकी आंखों में देखा।
मुस्कराते हुए मुनिलाल ने अपनी मूंछों पर ताव दिया, फिर उसके होंठों को चूम लिया।
मुनिलाल बोला- बहू, तुम बहुत अच्छी हो! बहुत खूबसूरत हो। होली मुबारक हो!
इतना बोलकर मुनिलाल बाहर निकल गया।
गुंजा उसे जाते हुए देखती ही रह गई।
लेकिन गुंजा आज अंदर से बहुत खुश थी।
आज पहली बार जमकर उसकी चुदाई हुई थी।
कुछ देर तक तो वो चुदाई के ख्यालों में ही खोई रही।
फिर उसने अपने कपड़े ठीक किए।
तभी उसे ख्याल आया कि चुदाई तो खुले में ही हो गई! क्योंकि रूम का दरवाजा खुला हुआ था।
उसने दरवाजे के बाहर आकर झांक कर देखा, कोई देख तो नहीं रहा?
फिर किसी को न पाकर वो जल्दी से भागती हुई बाथरूम में घुस गई।
अंदर जाते ही उसे फिर से वही पल याद आने लगे।
उसकी चूत ने फिर से पानी छोड़ना चालू कर दिया।
उसने अपनी चूत को झुक कर देखा तो वो पावरोटी की तरह फूल गई थी।
चूत को ऐसी हालत में देख उसके चेहरे पर हंसी आ गई।
वो अब खुद से ही शर्माने लगी।
कुछ देर बाद वो स्नान करके बाहर आ गई और किचन में चली गई।
वो सोचने लगी कि आज होली है, और दिन की शुरुआत बहुत अच्छी हुई है। आज का दिन बहुत ही अच्छा जाएगा।
गुंजा को आज एक नये और अनुभवी लंड की सौगात मिल गई थी।
यह लंड उसकी चूत की गर्मी को बखूबी शांत कर सकता था।
इन्हीं ख्यालों में वो मन ही मन मुस्कराने लगी।
फिर उसने एक ग्लास दूध गर्म करके पीया, और फिर सबको उठाने चली गई।
कहानी अगले भाग में जारी रहेगी.
आपको गुंजा की चुदाई की यह देसी बहू सेक्स कहानी कैसी लगी अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर देना।
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देसी बहू सेक्स कहानी का अगला भाग: गाँव की बहू की चूत में लंड की होली- 1