दो औरतों का झगड़ा, दोनों को चोदकर रगड़ा- 2

विलेज भाभी सेक्स कहानी में गाँव की दो औरतें लड़ रही थी, कोई उन्हें छुड़ाने नहीं आया तो मैं उनको छुड़ाने लगा. इस बिच बचाव में दोनों भाभियों के जिस्म ने मुझे बहुत मजा दिया.

दोस्तो, मैं आपका दोस्त विशू एक बार पुनः आपकी सेवा में हाजिर हूँ.
कहानी के पहले भाग
गांव में पड़ोसन भाभी को पेला
में अब तक आपने पढ़ा था कि मैंने मंजरी भाभी और मीनाक्षी भाभी की लड़ाई खत्म करवा कर पहले मंजरी भाभी की चुत चुदाई का मजा ले लिया था और उसे चोदने के बाद मेरे मन में मीनाक्षी भाभी को चोदने की लालसा भी उत्पन्न होने लगी थी.

अब आगे विलेज भाभी सेक्स कहानी:

मैं अपने कमरे से फिर से बाहर निकल गया.

पहले मैंने मंजरी भाभी के घर की तरफ देखा, कोई नहीं था.
फिर चारों तरफ नजरें घुमाईं तो कहीं कोई नहीं था.

मैं झट से पहलवान के घर में घुस गया.

अन्दर देखा तो उसके दोनों बच्चे घर पर ही थे, दोनों उस भाभी का बदन दबा रहे थे.

मैंने दस्तक दी तो उसने मुड़ कर देखा और उठकर साड़ी ठीक करने लगी.

अब भाभी बोली- अरे आप … अन्दर आइए ना!
मैं भी अन्दर चला गया.

उसने मुझे पानी दिया, चाय पिलायी.

तब तक मैं उसको निहारे जा रहा था, उसके एक एक अंग का जायजा ले रहा था.

मैं उसके पिछवाड़े को बहुत गौर से देख रहा था.
उसी वक्त उसकी नजर मुझ पर गयी.

उसे भी पता चल गया था कि मैं उसके पिछवाड़े को देख रहा हूँ.

अब वह और जोर से अपनी कमर मटकाने लगी.

कुछ पल बाद हम दोनों की नजरें मिलीं, हम एक दूसरे को देख रहे थे.
कोई कुछ नहीं बोल रहा था.

तभी बच्चे बोले- मम्मी, हम बाहर जाएं खेलने?
ये सुन कर हम दोनों अपनी दुनिया से बाहर आ गए.

वह बोली- हां, पर ज्यादा दूर नहीं जाना!
बच्चे बाहर चले गए.

भाभी फिर से मुझे देखने लगी.
मैंने बात शुरू की.

मैं बोला- भाभी कैसी हो आप?
तो वह बोली- मैं ठीक हूँ.

मैंने कहा- क्या बात हो गयी थी कि आप जैसी खूबसूरत, हसीना, कमसिन, नाजुक, समझदार, लड़की को झगड़ा करना पड़ा.
ऐसा बोल कर मैं पहले सॉरी बोला फिर बोला कि मतलब आप जैसी जहीन औरत को झगड़ा करना पड़ा!

यह कह कर मैं उसकी तरफ देख रहा था, वह मंद मंद शर्मा रही थी.

उसने मेरी तरफ देखा तो मैं उसे प्यार भरी नजरों से देखने लगा था.
पर वह कुछ बोली नहीं.

मैं बोला- भाभी बताओ ना!
अब वह बोली- बच्चों का झगड़ा हुआ था. मैं पूछने गयी तो वह मेरे ऊपर आने लगी. फिर मैंने भी उसे मेरा गुस्सा दिखा दिया.

‘पर भाभी आप गुस्से में बिल्कुल अच्छी नहीं लगतीं.’
इस पर वह शर्मा गयी.

मैं फिर से बोला- भाभी, एक बात और पूछ सकता हूँ?
वह बोली- पूछो ना!

मैं बोला- भाई साहब तो पहलवान हैं और आप एक कोमल लड़की हैं. आप कैसे सहन करती हो?
यह सुनकर वह कुछ देर चुप रही.

फिर मैं ही वापस बोला- भाभी, मैंने कुछ गलत तो नहीं पूछ लिया?
वह बोली- नहीं ऐसा कुछ नहीं है.

मैं फिर से बोला- भाभी, भले आपको बुरा लगे … पर आप एक नाजुक फूल हो, कोई रसीला इन्सान आपकी जिंदगी में होना चाहिए!
यह कह कर मैं शांत हो गया.
वह भी गुमसुम हो गयी.

मैं उसके करीब को गया और बोला- भाभी, आपको बुरा लगा क्या?
तो उसने कहा- नहीं, मुझे अच्छा लगा कि कोई मेरे बार में सोचता भी है.

मैं बोला- भाभी, आप गजब की खूबसूरत हो. भाईसाहब नसीब वाले हैं जो आप जैसी परी से भी सुंदर लड़की उन्हें मिली … और वे भी पहलवान हैं तो आपको हर तरीके से खुश रखते होंगे.

इस बात पर वह उदास सा मुँह बनाकर शांत हो गयी.

मैं बोला- भाभी बताओ ना, क्या आप भाईसाब से खुश नहीं हैं?
अब वह बोली- वे सिर्फ बाहरी शरीर से पहलवान हैं. अन्दर से नहीं.

मैं दिल ही दिल में खुश हुआ.

मैंने पूछा- भाभी, इतना भारी शरीर वाला आदमी अपनी बीवी को भी खुश कर नहीं सकता?
वह बोली- हां.

फिर मैंने कहा- भाभी, कोई नहीं मानेगा इस बात को!
तो वह बोली- क्यों?

मैं बोला- भाभी आपके दो बच्चे हैं. ये तो उन्हीं के हैं ना!
इस पर वह चुप हो गयी.

अब मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा तो वह सहम गयी पर बोली कुछ नहीं.

मैंने धीरे से उसके कंधे दबाए, थोड़ा उसके कंधे सहलाए.
वह और ज्यादा सहम गयी.

मैं बोला- भाभी, अगर मुझे आप एक अच्छा इन्सान समझती हो और अपना समझो, तो मैं आपकी हर बात को अपने दिल में राज रखूँगा. आपको जो भी दुख है, वह बोल दो.
वह रोने जैसा मुँह बनाकर मुझे देखने लगी.

मैंने अपने दोनों हाथ खोले और उसको अपनी बांहों में आने का न्योता दे दिया.

शायद वह भी जैसे इसी इंतजार में थी.
मेरी बांहों में आ गयी.

मैंने उस गले लगाया, उसे कसके अपनी बांहों में भर लिया.
मैं उसके गले को किस करने लगा, उसके बालों में अपनी उंगलियां चलाने लगा.

कुछ देर बाद मैंने उसे खुद से दूर किया और देखने लगा.
वह थोड़ी शर्माई और फिर से मेरी तरफ सवालिया नजरों से देखने लगी.

मैंने उसके होंठों को अपने होंठों में ले लिया और चूसने लगा.

उसने अपनी आंखें बंद कर लीं, उसकी सांसें तेज हो गईं.

तभी उसके पहलवान पति के आने की आहट हुई.

वह झट से अलग हो गयी.
मैं भी दूर हुआ.

उसने मुझे चारपाई के नीचे छुप जाने का इशारा किया.

चारपायी चादर से ढकी हुई थी.
मैं तुरंत चारपाई के नीचे छुप गया.

तभी मुझे किसी का साया आता दिखा, एक लंबा चौड़ा साया आया और चारपायी पर बैठ गया.
वह बोला- मीनाक्षी, पानी ला!

उसने पानी पिया और वह बोला- अच्छा ये बता किससे लड़ बैठी तू?
वह बोली- यह बाजू की कुतिया, बच्चे को भला बुरा बोल रही थी तो मैं ना छोड़ूँगी उसे!

वह बोला- चुपचाप पड़ी रह घर में. नहीं तो …

बस यह बोल कर वह उठ कर खड़ा हो गया और उसके पास गया.

गुस्से से उसके हाथ को मरोड़ा, वह दर्द के मारे पलट गयी.

पहलवान ने उसे दीवार से चिपका दिया.
वह दर्द के मारे चिल्लाने लगी.

उसके बच्चे आवाज सुन कर भागकर अन्दर आ गए.
पर पप्पा को देख कर वापस लौट गए, शायद वे भी डर गए थे.
पहलवान ने उसकी साड़ी पीछे से ऊपर की.

उसने मना किया क्योंकि उसे मालूम था कि मैं चारपाई के नीचे छुपा था.
पर उसकी कुछ ना चली.

पहलवान ने अपना लंड निकाला.
मैंने देखा तो साले का लंड बहुत ही छोटा सा था.

मैंने किसी तरह से अपनी हंसी रोकी.
उसने खड़े खड़े ही मीनाक्षी को थोड़ा झुका कर घोड़ी बनाया और पीछे से उसकी गांड में अपना लंड डाल दिया.

मीनाक्षी ने उन्ह आह की और पहलवान उसे चोदने लगा.

पहलवान ने उसे इस तरह झुकाया था कि मीनाक्षी की गांड का छेद और सूरज सिंह का लंड मुझे साफ दिख रहा था.
मीनाक्षी ने मेरी ओर देखा और उसके आंसू निकल आए.

मुझे भी मीनाक्षी को उस हाल में देखना अच्छा नहीं लगा.

उसका पति बेरहमी से उसकी गांड में लंड पेले जा रहा था पर उसके लंड का उस पर कोई असर नहीं हो रहा था.

वह बिना किसी हावभाव के झुकी रही.
मुझे उस पर दया आयी.

अभी शायद पाँच मिनट भी पूरे नहीं हुए थे कि पहलवान के लंड का पानी निकल गया और वह बाथरूम में चला गया.

मौक़ा देख मैं भी घर के बाहर निकल गया.

जाते वक्त मीनाक्षी मुझे देख रही थी पर मैं सीधे बाहर निकल गया.
मैंने उसकी तरफ देखा ही नहीं.

मैं अपने घर आ गया और वहां बाहर चबूतरे पर बैठ गया.

मुझे मीनाक्षी पर दया आ रही थी.
इतनी सुंदर औरत को कोई इस तरह करता है क्या!

उसकी उस घर में कोई इज्जत नहीं थी, खुले आम उसको साड़ी उठा कर पेल दिया.
कोई भी अन्दर आ सकता था, कोई देख भी सकता था. बच्चे आ सकते थे और दोनों को इस हाल में देख सकते थे.

तब उस औरत की क्या हालत होती!
शर्म के मारे तो मर ही जाती होगी वो!

दूसरी ओर पहलवान आदमी और लंड के नाम पर पतली सी नुन्नी.
क्या चोदता होगा ये आदमी अपनी बीवी को!

फिर ये बच्चे किसके हैं.
कहीं कोई और तो पानी नहीं डाल रहा इस रसीले पेड़ को … और फल भी उगा दिए!

यह सब ख्याल करके मेरा माथा ठनका. मैं बाहर खड़ा रहा.

कुछ देर बाद पहलवान बाहर निकला.
उसने मुझे देखा तो मैंने उसे हाथ दिखाया.

मैंने कहा- कैसे हैं पहलवान जी?
वह हंस दिया और बोला- जी ठीक हूँ!

वह अपने काम पर निकल गया.
मैंने सब जगह नजरें घुमाईं. सब अपने अपने कामों में मस्त थे.

मैं चुपके से पहलवान के घर में घुस गया.
अन्दर मीनाक्षी रो रही थी.

मैंने उसके कँधे पर हाथ रखा, वह डर गयी.

उसने झट से ऊपर देखा.
मुझे देख कर वह और तेज रोने लगी.

मैंने उसको चुप कराया, उसे गले से लगाया.
वह चुप हो गयी.

मैंने उसके होंठों को अपने होंठों में ले लिया और चूसने लगा.
वह भी गर्म होने लगी.

मैं उसके चूचों को दबाने लगा और उसे अपने सीने से चिपका लिया.

तब मैं अपने हाथों को उसके पिछवाड़े पर ले गया और साड़ी के ऊपर से ही चलाने लगा.

मैंने धीरे से उसके कान में कहा- दरवाजा खुला है!
वह झट से मुझसे अलग हुई और दरवाजे के पास जाकर बाहर देखने लगी.

उसने दरवाजा बंद कर दिया, फिर वापस आ गयी और खड़ी रही.

उसे फिर से मैंने अपनी गिरफ़त में ले लिया, उसकी साड़ी को पीछे से ऊपर की. उसकी नंगी उठी हुई पहाड़ी जैसी गांड पर मेरे दोनों हाथ चले गए.

मैंने उसके पीछे के छेद को कुरेदा तो उसके छेद में से उसके पहलवान पति का पानी आ रहा था.
उस गीले छेद में मैंने अपनी एक उंगली घुसाई, तो उसके पति के लंड का पूरा पानी मेरे हाथों पर बहने लगा.

अब उसकी गांड खाली हो चुकी थी.
मैंने अपना हाथ उसकी साड़ी से पौंछ लिया.

अब मैंने इस भाभी की चोली के हुक खोल दिए.
उसने ब्रा नहीं पहनी थी.
दोनों रसीले आम उछल कर बाहर आ गए.

मैंने बारी बारी उन्हें चूसा, दबाया, निप्पलों को खींचा.

उसकी आह्ह निकल गयी.

अब मैंने उसको अपने दोनों हाथों में उठा लिया, जैसे फिल्मों में उठाते हैं.
वह शर्मायी और उसने अपना चेहरा मेरी कमीज में छुपा लिया.
मैंने उसको बेड पर लिटाया और उसकी साड़ी निकालनी चाही, पर उसने मना कर दिया.

वह- ऐसे ही … कोई आ जाएगा!
मैंने उसके पैरों को ऊपर उठाया और साड़ी को ऊपर कर दिया.

मैं उसकी चुत को निहारने लगा.
वह साड़ी के कोने से अपनी चुत को छुपाने का प्रयास करने लगी.
मैंने उसकी एक ना चलने दी.

उसकी चुत पर भी बगल वाली भाभी जैसे थोड़े थोड़े बाल थे, जैसे कुछ दिन पहले साफ किए हों.

मैंने उसकी गुलाबी फांकों को छुआ, उसकी चुत के दाने को दबाया, सहलाया.

उसके मुँह से इस्स निकल गया.
वह अम्म आह्ह करने लगी.

मैंने झुक कर भाभी की चुत को सूंघा, अपनी नाक को उसकी चुत पर रगड़ा.
फिर जुबान को निकाल कर मैंने उसकी चुत की फांकों को चाटना शुरू कर दिया.

उसने बेड की चादर को अपनी मुट्ठी में भर ली.
यह अहसास उसके लिए नया था.
उसकी चुत से क्या मस्त खुशबू आ रही थी.

मेरा लंड अकड़ कर पतलून में छटपटाने लगा.

मैंने जुबान उसकी चुत के अन्दर उतार दी.
जुबान को मैंने उसकी चुत में गहराई तक जाने दिया और फिर जुबान हिलाने लगा.

उसकी चुत के अन्दर तूफान उठने लगा, उसकी टांगें थरथराने लगीं.

भाभी ने टांगों के बीच में मेरे सर को दबा लिया.
पर मैं नहीं रुका.
अपने हाथों से मैं उसकी टांगों को अलग करके चुत को जुबान से चोदने लगा.

उसने अपनी आंखें बंद कर लीं, उसका पेट ऊपर नीचे होने लगा.
भाभी होंठों को दातों से दबाने लगी और कुछ ही पलों में उसकी चूत का फव्वारा छूट गया.
वह झड़ने लगी.

उसके मुख पर एक अनछुयी और सुकून भरी मुस्कान थी, जैसे आज उसकी पहली चुदाई हुई हो.

मैंने उसकी चुत में से अपनी जुबान निकाल ली और मैं खड़ा हो गया.
अब मैंने अपनी पतलून उतार दी, लंड को लहराने दिया.

उसी वक्त मीनाक्षी भाभी ने अपनी आंखें खोलीं.
मेरा लंड उसकी आंखों के सामने था.

वह चिल्ला दी- उई मां!
तत्काल खुद उसने अपने मुँह पर अपना हाथ रख कर आंखें बंद कर लीं.
शायद वह इतना बड़ा लंड देख कर डर सी गयी थी.

मैंने उसके पैरों को फैलाया.
लंड को उसकी चुत पर सैट कर दिया और एक धक्का दे मारा.

मेरा लंड चुत को फैलाते हुए अन्दर घुस गया.

लंड ने चुत के आखिरी छोर पर दस्तक दे दी.

मीनाक्षी के मुँह से ‘अम्मा अम्मा …’ निकलने लगा था.
उसको दर्द हो रहा था.

शायद बहुत दिनों से उसकी चुत चुदायी नहीं हुई थी.

मैंने चुदाई शुरू की; विलेज भाभी सेक्स का मजा आने लगा.

मैं घपाघप ठोके जा रहा था, उछल उछल कर लंड से चुत में चोट किए जा रहा था.

ठप ठप की आवाज घर में गूंजने लगी.

मीनाक्षी भाभी आज गांड पति से और चुत मेरे लंड से चुदवा रही थी.

पर पति जबरदस्ती ठोक गया था और मैं प्यार से उस चोद रहा था.
मुझसे वह खुशी खुशी चुद रही थी.

मैं उस चोद रहा था तब उसके चेहरे पर असीम आनन्द की रेखाएं थीं.

वह फिर से एक बार अकड़ने लगी.
उसने मेरी पीठ में नाखून गाड़ दिए और आह्ह की गूंज के साथ बहने लगी.

पर मैं अभी भी उसे चोदे जा रहा था.

अब मैंने उस पलट दिया.
वह डर गयी.

उस लगा कि कहीं मैं भी उसके पति की तरह उसकी गांड मारने वाला हूँ.

पर मैंने पीछे से उसकी चुत में अपना लंड घुसाया और दनादन चोदने लगा.
हर धक्के पर वह हिल जाती.

उसे चोदते हुए मुझे 20 मिनट हुए होंगे, अब मेरा भी निकलने को हुआ.

आठ दस झटकों में मेरे लंड ने पिचकारी मारी.
मेरा वीर्य उसकी चुत में भरने लगा.

कुछ देर बाद मैंने अपना लंड निकाल लिया.
वह बेड पर गिर गयी.

मैं बाथरूम में आ गया.

साफ सफाई करके मैं वापस बाहर आया.
वह वैसी ही पड़ी थी.

मैंने उसे उठाया और बोला कि बाथरूम जाओ!
वह चुपचाप बाथरूम में चली गयी.

कुछ देर बाद लौटी, तो उसके चेहरे पर सुकून वाली मुस्कान थी.

मीनाक्षी ने मेरी ओर देख कर स्माईल दी और बोली- आज मैं पूरी तरह से संतुष्ट हुई हूँ.
मैं बोला- भाभी एक बात पूछू? मैंने आपके पति का सामान देखा है. उसकी तो मेहनत बेकार की है, तो ये बच्चे किसके हैं?

वह उदास हो गयी.

मैं बोला- भाभी, आज से आप मेरी हो गयी हो. आपके सारे राज मेरे हुए. मैं किसी को नहीं बताऊंगा.
वह बोली- हमारे बाबूजी (ससुर जी) जब भी आते हैं, हमारा पांव भारी करके ही जाते हैं.

मैं बोला- कैसे?
‘रात को खाना खाने के बाद ये सो जाते हैं. मैं बाबूजी के पैर दबाने बैठ जाती हूँ. कुछ देर पैर दबाने के बाद बाबूजी हमको अपने साथ …’

यह कह कर वह शर्माने लगी.

मैं समझ गया कि इसका ससुर इसे पेलता है.

मैं बोला- अब मैं चलता हूँ मीनाक्षी, फिर आऊंगा.
इतना कहकर मैं बाहर निकल आया.

एक महीने मैं मैंने उस करीब 20 बार चोदा.
घर के बाजू में, तो कभी मेरे घर में, तो कभी उसके घर में.

एक महीने बाद उसने मुझे बताया कि उसके पांव भारी हो गए हैं.
वह खुश थी और मै भी खुश हो गया.

मेरा विलेज भाभी सेक्स कहानी कैसी लगी?
मुझे बताना.
धन्यवाद दोस्तो.
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